मेरा हाथ छुड़ा उसने कुछ ऐसा बोला,
जिसने मेरे मन का द्वार खोला!!
मैने तो जीवन बस उसके इर्द गिर्द संजो लिया था,
पर उसने अनकहे बहुत दुख दिया था!!
सुबह ना होगी उसके बिन ये सोच जीती थी,
रोज़ कितने आंसुओ के घूंट पीती थी !!
एक दिन हिम्मत कर मैं जब थोड़ा आगे निकल आई,
तो देखती हूं की..सूरज भी निकला,
में खुद चल सकती हूं, ये देख मेरा भरम पिघला,
खुद पर अविश्वास कर हम आगे नही बढ़ते,
तब जाना कि उससे केवल कदम पीछे को घटते !!
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