ज़ुबाने ख़ामोश हो चुकी हैं सच बोलेगा कौन ?
आंखें अंधी हो चुकी हैं सच देखेगा कौन ?
कान बहरे हो चुके हैं सच सुनेगा कौन ?
हाथ पैर टूट चुके हैं सच ढूंढेगा कौन ?
बस यही मेरे कुछ सवाल हैं आसिफ
चलो मान लिया चंद लोग सच दिखाने लगे, लिखने लगे, सुनाने लगे
मगर सवाल वही है सच देखेगा, पड़ेगा, सुनेगा कौन ?
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