काश हम भी ये लहरें होते,
छोर पर छछले, बीच से गहरे होते,
मुश्किलों से ऐसे ही टकरते,
जैसे ये टकर्ती है,
चाँदिनी रातो में वैसे ही बिफरते,
जैसे ये बिफरती है,
उतनी ही दूर तक जाते
जितनी ये जाती है,
उठते, गिरते, रुकते
जैसे ये कर पाती है,
काश हम भी ये लहरें होते,
छोर पर छछले, बीच से गहरे होते।
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