उगते सूरज की हर एक किरण
इक उम्मीद नयी जगाती है,
तुझसे मिलने की ख्वाहिश में
ये नज़रें बस दरवाजे पर ही
टिक जाती है।
मगर फिर दिन ढलते ही
वो उम्मीद भी कहीं ढल सी जाती है,
शायद तू कल आ जाए खुद से ये कहकर
खुद को ही समझा लेती हूँ।
सुन मुझे मिलना है तुझसे
फिर क्यों तू मिलना चाहता नहीं,
या कहीं ऐसा तो नहीं
मेरे घर का रास्ता ही तू जानता नहीं।
हाँ, मानती हूँ तू वक़्त है
तेरे पास इतना वक़्त नहीं,
मगर मेरे भी कुछ सवाल है
उनके जवाब तो दे कभी,
कहते सुना है मैंने सभी को
'वक़्त आने पर सब समझ आ जाएगा'
मगर वो वक़्त भी न जाने किस वक़्त आएगा।
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