माँ बाबा की परी थी मैं।
फूलों की तरह पली बड़ी थी मैं।
मुस्कुराहट मेरे चेहरे पर बनी रहती थीं।
हमेशा नाचती गाती खिली -खिली सी रहती थी।
फिर एक दिन माँ बाबा ने मुझे विदा किया।
उस इंसान ने कुछ दिन बाद
अपना असली रूप दिखा ही दिया।
ऐसा लगता था जैसे जीते जी
उसने मुझे मार ही दिया।
वो मारता
था मुझे,
और में चुप चाप मार खाती थी।
हर पल अपनी किस्मत को
कोसती रोती रहती थी।
फिर एक दिन ये
खामोशी मेने तोड़ दी।
हिम्मत की और अपनी ताकत उसे बता ही दी।
आज वो कैदी है , और अपने पापों
की सज़ा भुगत रहा है।
आज मैं खुले पंछी की तर
अपनी किस्मत लिख रही हूं।
नाज़ है मुझे मैने जो हिम्मत दिखाई।
हेवान्यत को उसकी असली जगह बताई।
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