गाँव का स्कूल।
साक्षरता से दूर था,गाँव में ना कोई स्कूल था।
बस्ती में गरीबी थी,दसवीं पास करने की भी किसी ने नहीं सोची थी।
कुछ अमीर-जादे थे, जो अपने बच्चो को पढ़ा लेते,
शिक्षा के लिए उन्हें शहर भेजते।
गरीबों के पास तो खाने के नहीं थे पैसे,तो छात्रावास कैसे भेजते?
कुछ बच्चों के पढ़ने से गाँव साक्षर कैसे होता,
"क,ख और ग" इनके लिए अक्षर कैसे होता?
फिर, ना मंदिर मस्जिद, ना मॉल बना।
बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए, एक स्कूल बना।
बैर कराती मंदिर मस्जिद,मेल मिलाप कराता स्कूल।
अब, गरीब का बेटा गरीब नहीं,पढ़ लिख गए सभी।
असाक्षरता का नामोनिशान नहीं,बेटियां भी खूब पढ़ लिख रही।
न जाने कितने इंजीनियर और कितने डॉक्टर बने,
यहाँ से पढ़, कई अफसर बने।
शिक्षा एक हथियार हैं,इसका विकल्प ना कोई और है।
यह जीवन का आधार है।
शिक्षा की कदर कर लो,गुरुजनों का सम्मान कर लो।
बचे हुए गाँव में भी स्कूल खोल दो।
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