देने हिदायतें पूरी दुनिया खड़ी है सामने,
हो जाएं जो गलतियां, सीखने के चाह में।
बेवक्त की हैं साजिशें, इन उलझनों के जाल में,
कुछ तो चल रहा है, इस सही- गलत की आड में।
ये नासमझियां है निशाना, मुफ़्त में मिल रहे ज्ञान का,
अस्त्र चला है या शस्त्र,ये तो मसला ही है बाद का।
वजह तो ज़रूर है, ' ये सही है ' के प्रचार की,
यूंही नही हदे तय हो रही, उड़ने से पहले उड़ान की।
कोई तो समझ ले, की जो तुमने ख्वाहिश ज़ाहिर की है,
कर दी है गलती तुमने, यहां समझाने वालो की कतार है।
मुद्दा ये नही है मेरा, कि कहना - सुनना नही चाहिए,
बस कुछ पछतावा बनकर अंदर तुम्हारे, जीना नहीं चाहिए।
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