अकेले होने पर गले से लगाते हो महफ़िल में देते आवाज़ तक नहीं मेरी बातों के जवाब आंसू ही होते हैं तुम्हारे मन में छिपा है राज़ तो नहीं जब मर्ज़ी जाते हो फिर चले आते हो मुझे तो समझ बैठे हो बर्बाद ही कोई हर शख्स के लिए हो, मेरे लिए नहीं हरकतों से लगते हो जालसाज़ हीं कोई हर वक्त चुभता हैं मन में सवाल एक कहीं तुम धोखेबाज़ तो नहीं ||