मन्दिर से शंख नाद , मस्जिद से अजान जाती रही . तेरी रुख्सती क्या हुई मेरे जिस्म से जान जाती रही . इश्क़ रूहानी था मेरा और उसे जिस्म की हसरत थी , मैं नजरें मिलाता रहा वो बदन पे उंगलिया घूमाती रही.
हाथों की उंगलियां कभी एक जैसी नहीं होती!... हर एक उंगली दूसरी उंगली से अलग दिखती है, हम इंसान भी उन उंगलियों जैसे है, हर एक इंसान दूसरे इंसान से अलग है फिर उनकी सूरत हो या सीरत!.....