रुक्मिणी को सर आँखों पे बिठाऊँ
ना गोपी ना राधा कहलाऊँ
ना तेरे मुकुट का हीरा हूँ
कान्हा ना मैं मीरा हूँ ..
निश्छल प्रेम है मेरा तुमसे
हर जुग साथ निभाना है
मित्र तुम्हीं को समझा हमने
सखा तुम्हीं को माना है..
दोस्ती भर माँगी है तुझ से
संसार किसने माँगा है
मैं भल तेरी ग़रीब सुदामा
तू मेरा कान्हा है !!
©LightSoul
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