एक जमाना से, हम उससे खफा बहुत है,,,
अब क्या बताए ये किस्सा पुराना बहुत है।।
अब तक तो दिल से दिल का राब्ता न हो सका,,,
माना उसमें साजिशें बहुत है।।
बेवफा खेल का हिस्सा है मोहब्बत की महफिल में,,,
यून जिक्र न कर उसका , माना हम शर्मीदा बहुत है।।।
हा मैं हूं परवाना ,,,
मगर इस बेजुबान पल में शम्मा तो हो रात तो हो,,,
माना कुछ इज़हार_ऐ_करामात बहुत है ।।
जान देने को हूं मौजूद,,,
मगर जानिब इस कहानी का दस्ताना बहुत है।।।
~कविता कुमारी 🍁
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