अगर मैं किताब होता,
तुम्हारे दिल के पास होता।
दिन-रात तुम मुझे पढ़ती,
मैं तुम्हारी आँखों के पास होता।
जब तुम 'मुझे' पढ़ते-पढ़ते खो जाती,
मैं तुम्हारे ही सिरहाने, तुम्हारे साथ सोता।
तुम मुझे शौक से खरीदती,
मैं ख़ुशी से पागल होता।
मुझे पढ़के तुम कभी हंसती..कभी रोती,
मैं तो तुम्हे ऐसा करता देख,
केवल अश्क़ बहाता होता।
अगर मैं किताब होता..
काश मैं किताब होता।
- साकेत गर्ग
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