करती हो गर इश्क, तो कीमत जिस्म की चुकानी पड़ेगी
आशिक नही वह सीरत का, ये बात ज़मीर को बतानी पड़ेगी
प्यार की राहों में, तुमको हया की चादर हटानी पड़ेगी
मोहब्बत के नाम पर, ज़िल्लत हरदम सहनी पड़ेगी
वह धुतकारेगा और फिर बुलाएगा, ज़रूरत उसकी पुरी करनी पड़ेगी
रिश्ते के नाम पर, तुम्हें इज़्जत भी अपनी गवानी पड़ेगी
आसान नही ये डगर, ये सच्चाई खुद को एहसास दिलानी पड़ेगी
ज़रा सी भूल पे छोड़ देगा वह, इन अल्फाज़ों पे गांठ बांधनी पड़ेगी
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