लौटा दो वो कागज़ की कश्ती,
बारिश में भीगते तन-मन लौटा दो,
लुका-छिपी, वो गलियों में शोर,
खेले जो खेल पचपन लौटा दो।
दफ़्तर की ओर दुखते हैं कदम चल-चल कर,
झूले झूलती तेज़ धड़कन लौटा दो,
आईने में हारा हुआ पाते हैं खुद को,
खिलखिलाता देखें खुद को वो दरपन लौटा दो।
कि अब थक गए हैं जी कर ये बेगैरत जवानी,
हो सके तो मुझे, मेरा बचपन लौटा दो।।
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