दरिंदगी की भूख में बन भेडिया इंसान, भूल कर इंसानियत है कर रहा शिकार...
पहन चोला शराफत का, कोई बेशर्म खुलेआम, घात लगाए बैठा कोई नोचने को त्यार |
खेल रहा कोई जिस्म से कोई रूह को तड़पा रहा ...
खेल रहा कोई जिस्म से कोई रूह को तड़पा रहा ...
खंजर सबके हाथ में क्या दोस्ती क्या प्यार ||
-