QUOTES ON #THOUGHTFORNEWYEAR

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7 FEB 2017 AT 19:35

लोग कहते हैं :" बड़े दिनों से तुमने कुछ लिखा नहीं |

मैंने कहा :" बस अब दिमाग की बातें दिल के लबों से कलम तक आनी बंद सी होगई हैं "|

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19 JAN 2017 AT 20:15

ज़िन्दगी , हाँ ज़िन्दगी , कभी सोचा आखिर ज़िन्दगी क्या है |
ये ज़िन्दगी कैसी है क्यों हैं , किस्से है , किनके लिए है |
क्या ये युहीं घड़ी के लम्हो से जुड़ा इक पहर है , या फिर नसीब के वो पल जो हम अनेक लम्हो में बिता देते हैं !

क्या ये माँ की गोद में खेलता नन्हा बचपन है |
या फिर उस मेहबूब की आँखों में छुपा गहरा प्यार ||
या फिर बूढ़ापे में छूटती हुई दुनिया का एहसास है |
आखिर कार क्या है ये ज़िन्दगी ||

लेकिन कभी रूह की नज़रों से देखो तो पता चलेगा ये ज़िन्दगी क्या है |

ये ज़िन्दगी पर्वतों के पीछे से उगते हुए सूरज की रौशनी है |
ये ज़िन्दगी अमावस के अँधेरे को मिटाते हुए चाँद की शीतलता है ||
ये ज़िन्दगी पेड़ो की टहनी पे सुरीली कोयल का मधुर संगीत सा है |
ये ज़िन्दगी समुद्र के किनारे पर शांत होती लहरो सी चंचलता है |
ये ज़िन्दगी ऊँचे शिखरों पैर जमी सफ़ेद बर्फ की विशुद्धता है
आखिर कार बहुत खूब सूरत है ज़िन्दगी ||

पर क्या कभी इस ज़िन्दगी को महसूस किया है |
क्या कभी उस नन्ही माँ के आँचल में खिलखिलाती ज़िन्दगी को महसूस किया है ||
क्या कभी बारिश के मौसम में सड़को पर पानी में छपकते हुई उस नन्ही ज़िन्दगी को महसूस किया है |
क्या कभी उस उस माँ के हाथ के खाने में छुपे उस मुह के स्वाद जैसी ज़िन्दगी को महसूस किया है |
क्या कभी बाबा की धुप और बारिश में दौड़ती हुई उस ज़िन्दगी का एहसास किया है||
क्या कभी किसी प्यार करने वाली की अश्को में छुपी उस ज़िन्दगी पे ऐतबार किया है |
क्या कभी उस ढलती हुई उम्र में एक दूजे का हाथ थाम कर चलती हुई ज़िन्दगी का एहसास किया है ||

पर ये ज़िन्दगी थम क्यों जाती है |

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8 FEB 2017 AT 21:38

मैं तो चाँद की तरह ज़िन्दगी में उजाला भरना चाहता था |
पर तुम्हे तारों की टिमटिमाहट से फुरसत न थी ||

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28 FEB 2017 AT 23:13

जब रुक नहीं सकते तो मेरी गली आते क्यों हूँ
जब मेरी सुन नहीं सकते तो अपनी सुनाते क्यों हो
जब दिल लगा नहीं सकते तो दिल की बातें बताते क्यों हो
जब कदर कर नहीं सकते तो अपनी कीमत दिखाते क्यों हो
जब मेरे हो नहीं सकते तो दिल मेरा बहलाते क्यों हो
और
जब भूल चुके थे मुझे तो मेरी कब्र पर आते क्यों हो

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19 FEB 2017 AT 13:37

जो टूटे दिल को आराम मिले तो मैं भी आता मधुशाला
जो ज़ख़्मी दिल तो मरहम लगे तो पी लेता मैं इक प्याला

जो अश्कों से बहती धार को किनारा दे तो मैं भी आता मधुशाला
जो हारे नैनो में नींद भरे तो पी लेता मैं इक प्याला




(Read in english below )

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22 JAN 2017 AT 12:47

ना जाने कब मैं माँ की गोद में खेलते खेलते तुझे भूल गया
न जाने कब ज़िन्दगी मैं आगे बढ़ते बढ़ते शायद कहीं तुझसे छूट गया

नानी , हाँ सही कहा है लोगो ने माँ मेरी है जिसकी परछाई
भूला नहीं बस ज़िन्दगी के असमंजस में फस गया हूँ
असमंजस ही ने तेरी सिखाई हुई बातों को आज भी आस पास की भागती दुनिया में खोज रहा हूँ
पर ऐसा ना सोचना की तुझे भूल गया हूँ

मुझे आज भी याद है वो 2 पहर जब तू रामायण सुनाती थी
घंटो घंटो राम की कर्त्तव्य निष्ठां की बात बताती थी
और याद है जब हनुमान की बात बतलाती थी , चेहरे पे मेरे कैसे रौनक आजाती थी
आज भी उसी कर्त्तव्य निष्ठां से ज़िन्दगी निभा रहा हूँ
बस यही गम है तुझे वक़्त नहीं दे पाता हूँ

नानी याद है जब तेरे पास छुट्टियों में आता था
तेरे हाथ के बने वो खाने का स्वाद मुँह मे फैल जाता था
आज भी तेरे उस निम्बू के अचार का स्वाद मुँह से नहीं जाता है
आज भी दर्द गले में तेरे हाथों की बनी घी वाली चूरी का स्वाद याद आता है
मन तो बहुत करता है की तेरे पास आकर तेरे हाथों से बानी वो लस्सी का स्वाद फिर से ले सकूं
मन तो करता है आज भी तेरे हाथो की बनाई हुई पिन्नी को सर्दियो में चख सकूं
पर यही गम है आज पहले सी छुटियाँ नहीं पहले सा बचपन नहीं

नानी याद है जब बचपन में परीक्षा निकट आती थी
हर परीक्षा से पहले सुबह सुबह तेरी टेलीफोन पर कॉल ज़रूर आती थी
चाहे मेरी तैयारी न के बराबर होती थी , फिर भी तेरे आशीष से अच्छे नंबर लाने की बहुत उम्मीद होती थी
हलाकि तू भी टीचर काम नहीं थी , ज़िन्दगी की कड़ी परीक्षा देने की सीख तूने बचपन से ही दी थीपर यही गम है आज कल हर पहर एक परीक्षा है और आज भी तेरे टेलीफोन की घंटी की अपेक्षा है I

नानी याद है बचपन में जब सर्दी आती थी
तू मेरे लिए अपने हाथो से स्वेटर बुनकर लाती थी
जब भी तू आती थी साथ में टोपी और मुफ्फलोर भी लाती थी
जब जब मैं सर्दी में ठिठुरता था तेरे बने हुए स्वेटर में जाकर छुपता
पर यही आज जब सर्दी आती है , महँगे से महँगी ऊन से बने स्वेटर में इस मन को शांति नहीं आती है

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19 JAN 2017 AT 20:17

ठहर जाना तो इस प्रकृति का नियम है |
बिलकुल उसी तरह जैसे एक रास्ता मंज़िल पर जाकर ठहर जाता है ||
बिलकुल उसी तरह जैसे एक नाव अपने साहिल को मिलते ही रुक जाती है |
बिलकुल उस तरह जैसे अग्नि से मिलकर लकड़ी राख होजाती है ||
बिलकुल उस तरह जैसे आँखों से गिरे आंसू चेहरे के रस्ते से मिट जाते हैं |
और बिलकुल उस तरह जैसे आत्मा परमात्मा से मिल कर ठहर जाती है .|

हाँ यही ज़िन्दगी है |

कभी गर्मी की कड़कती सुबह तो कभी सर्दी की ठंडी छाँव |
कभी काले बादलों को हटाता हुआ चमकता सूरज तो ||
तो कभी उन्ही बादलों के पीछे छिपता हुआ चन्द्रमा |
कभी किसी हस्ते चेहरे के पीछे छुपे हुए आंसू ||
तो कभी नन्हे बचपन में किसी ज़िद पर आँखों से बहते वो प्यारे आंसू |
कभी किसी की आँखों में छुपी वो प्रीत पुरानी ||
तो कभी किसी टूटे हुए दिल की कविता

बस यही है ज़िन्दगी नन्ही सी कहानी

” इस ज़िन्दगी से क्या शिकवा करना
क्या पता कल कहाँ हो , क्या रहे या न रहे
तो इन्ही लम्हो को हस्ते खिलखिलाते जीते जाओ
क्या पता अगले पल की उम्र कितनी लंबी हो “

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25 FEB 2017 AT 11:49

Main achar hota to tum Martabaan hojati
Main murabba hota to tum chashni banjati

Main bicycle hota to tum uski chain banjati
Main e-rickshaw hota to tum battery banjati

Main bachpan hota to tum anchal banjati
Main khushi hota to tum uska chehra banjati

Main mandir hota to tum Mannat banjati
Main mazjid hota to tum aayat banjati

"Kaash Main zindagi Hota aur Tum uski Saansein Banjati "

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