कलम मेरी सूख गयी है
कागज़ कोरे ही फड़फड़ाते है
अब हवा में स्याही महकती नहीं
आसू निगाहो में ही रह जाते है
अब यादे पन्नों में नहीं बसती
पन्ने मोड़े कहा जाते है
अब gallery में search करते है
डायरी में तस्वीर कहा छुपाते है
बड़े दिनो से वह सूखा गुलाब न दिखा
जिसका रंग तुम्हारे गालो सा
पन्नो पर चढ़ा हुआ था
अब होती है दिक्कत
तुम्हारे नाम की नज़्म ढूँढने में
पहले तो वह गुलाब को
bookmark बना कर रखा हुआ था
आज बस पास से गुज़रते हुए
सिर्फ़ hii.. hello. ही करते है
वह अचानक से टकरा कर,
किताब गिराना बंद हो गया
बड़ी मुश्किल होती है
इश्क-ए-इज़हार करने में
जब से कलम...स्याही...
डायरी और वह सूखा गुलाब खो गया
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