सारे जहाँ मे तेरे, रहमत का सिलसिला है।
फिर रिज़्क़ सब इंसानों को, क्यों नहीं मिला है।।
क्यों तूने एक जैसी, सब को ख़ुशी ना बख़्शी।
तुझसे यही शिकायत, तुझसे यही गिला है।।
ये कैसा गुलिस्ताँ है, तू ही बता दे रब्बा।
मुरझाई कली है कोई, गुल कोई यहाँ खिला है।।
कोई कमी नहीं है, तगर तेरे इस जहाँ में।
फिर क्यों तेरे इंसान को, इक जैसा नहीं मिला है।।
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