सीखा है मैंने ग़म भी खुशी से काटना
बेवफ़ा की बात वफादारी से काटना।
बड़े लोगों में पाया ये बड़प्पन हमने
किसी की बात समझदारी से काटना।
हमसफर साथ हो चाहे कोई राह हो
सफर ए हयात खुशी हंसी से काटना।
तक़लीफ़ उनकी इतनी महरूम हैं जो
अपने खास पल भी बेबसी से काटना।
हो इंतज़ार तो फिर आलम यही होगा
एक टुक लगा के देख घड़ी से काटना।
रतजगों से जब जी भर जाये, ये करना
तवील सियाह रात को आरी से काटना।
मोहब्बत में हमेशा मेल हो मुमकिन नहीं
ताउम्र फिर ये तुमको जुदाई से काटना।
कुछ शेर गर कम पसन्द आये तुमको
'रिया' ग़ज़ल को अपनी लिखाई से काटना।
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