बहाकर वह रक्त हर महीने का
वह सबका ख्याल रखती है।
उन चार दिनों के दर्द में
वह हर एक काम करती है।
अक्सर दबाके उस पीड़ा को
अपनी मुस्कान से,
खुद की तकलीफें छिपाती है।
एक स्त्री ही तो है जो
दाग- धब्बों के डर से
पीछे मुड़-मुड़ कर देखने के बावजूद
आगे बढ़ने के लिए कदम बढ़ाती है।
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