सभी के साथ हंसता और मुस्कुराता था,
मन ही मन अनगिनत राज़ छुपाता था,
शायद चकाचौंध की दुनिया से सदा
निकाले जाने का भय उसे सताता था।
अंतर्मन भीतर से बेसुध और मौन पड़ा था,
कुछ कर दिखाने की ज़िद पर अड़ा था,
दुनिया से कमजोर होकर फैसला किया,
वो लम्हा ना जाने उसके लिए कितना कड़ा था।
निखर रही थी बेमिसाल छवि उसकी,
शिखर पा रही थी अद्भुत हस्ती उसकी,
कुछ ठेकेदार को रास ना आया
तोड़ कर बिखेर दी कहीं कश्ती उसकी।
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