कल से तुमको देखा है,तुम आंँख पसारे बैठी हो
कुछ ढूंढ रही खोया तिनका,या खो जाने से डरती हो।
कुछ कहना है या मौन धरे,नित आकाश निहार रही
ना फूटेगा दर्द प्रवाह,क्यों बादल को ललकार रही।
ज्येष्ठ की भीषण गर्मी में,तुम अश्रु की चादर ओढ़ी हो
ह्रदय का पूरा दर्द भरे,तुम कसकर मुट्ठी भींची हो।
आंँखों की कजरी भी अब,सूखे पतझड़ की धार हुई
तुम कहती थी जिसे मधुर,क्या वहीं तुम्हारी हार हुई?
-