QUOTES ON #STATUS

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9 HOURS AGO

ग़ज़ल

हम जिस जहांँ में नेक सजन ढूंँढ़ रहे हैं
लोग उसमे फ़कत अच्छा बदन ढूंँढ़ रहे हैं

इस तर्क–ए–त'अल्लुक़ पे हमें रोना था लेकिन
हम डायरी में शेर-ओ-सुख़न ढूंँढ़ रहे हैं

फूलों की हिफ़ाज़त में लगे हैं सभी काँटे
और फूल हैं जो उनमें चुभन ढूंँढ रहे हैं

दौलत तो कमाई है मगर खो चुके हैं चैन
परदेस में जो अपना वतन ढूंँढ़ रहे हैं

मायूसी के अंधेरे यहांँ हैं घने लेकिन
उम्मीद की हम फिर भी किरन ढूंँढ़ रहे हैं

बर्बाद ख़िज़ाओं के जो मौसम में न हो यार
ऐसा यहांँ हम कोई चमन ढूंँढ़ रहे हैं

नाचीज़ का है ’साद’ तख़ल्लुस कहो उनको
जो लोग यहांँ अहल-ए-सुख़न ढूंँढ़ रहे हैं

सिद्धार्थ सैनी ’ साद ’

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19 HOURS AGO

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26 MAR AT 22:01

ग़ज़ल

ऐसे हालात थे ग़म-ख़्वार के आंँसू छलके
देखकर मुझको मिरे यार के आंँसू छलके

ये ख़िज़ाँ बाग से सब कुछ चुरा के ले गई है
फूल मुरझाए सभी ख़ार के आंँसू छलके

एक दिन मंँझले ने जब बाप से हिस्सा मांँगा
बँट गया घर दर–ओ–दीवार के आंँसू छलके

पढ़ता रहता है शब–ओ–रोज़ ये ख़ूनी ख़बरें
आज फिर यूँ हुआ अख़बार के आँसू छलके

दर्द इतना ये क़लम मेरा बयाँ कर चुका है
अब तो काग़ज़ पे भी अशआर के आंँसू छलके

सैकड़ों लोग जनाज़े में मेरे शामिल थे
और दुख ये है की दो चार के आंँसू छलके

क़त्ल करते हुए माथे पे शिकन थी न मगर
मौत के डर से गुनहगार के आंँसू छलके

इस तरह उससे महब्बत हुई है मुझको ’साद’
मैं भी रोता हूंँ अगर यार के आंँसू छलके

सिद्धार्थ सैनी ’ साद ’

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24 MAR AT 14:23

मैं उस राह को भूलना चाहता हूँ,
जहाँ तेरे होने का एहसास आज भी है।
😔

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20 MAR AT 15:22

खुलकर हंसना
लोगों की भीड़ में अजीब लगता है
पर वही तस्वीर में सही लगता है...😊📸💯

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15 MAR AT 6:40

గుర్తుంచుకో..
వాట్సాప్, ఇన్ స్టా అయినా
జీవితమైనా..
ఇతరులు చూసేది
నీ స్టేటస్ మాత్రమే..!!
- 1+నాని✍️

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अपनों ने ठुकराया मुझे
मैं अन्दर से टूट गई
उसने नहीं बुलाया मुझे
मैं उससे ही रूठ गई

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12 MAR AT 11:32

ग़ज़ल

शिद्दत ही मेरे ग़म की बढ़ाने के लिए आ
तू शौक़ से इस दिल को दुखाने के लिए आ

दीवार ये नफ़रत की गिराने के लिए आ
नग़मात महब्बत के सुनाने के लिए आ

हमको नहीं दरकार तेरे रहम की जानाँ
तू रोज़ सितम इक नया ढाने के लिए आ

मझधार में डूबे न महब्बत का सफ़ीना
कश्ती ये किनारे से मिलाने के लिए आ

मैं तुझको ये कब कहता हूंँ रक्खे तू मुझे ख़ुश
सौ बार मेरे दिल को दुखाने के लिए आ

ता उम्र न भर पाए किसी भी दवा से जो
ऐसा कोई तू ज़ख़्म लगाने के लिए आ

इन्कार इनायत से तेरी हमको नहीं है
एहसान सनम फिर भी गिनाने के लिए आ

तू ख़ुश है बहुत मेरे बिना कैसे ये मानूँ
इक बार यकीं इसका दिलाने के लिए आ

ये लोग गुनहगार बताते हैं मुझे ’साद’
इल्ज़ाम मेरे सर से हटाने के लिए आ

सिद्धार्थ सैनी ’ साद ’

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8 MAR AT 4:30


।। काल हर, दुख हर, दारिद्र हर, कष्ट हर, रोग हर
हर हर महादेव ।।

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7 MAR AT 13:12

उम्मीद जरूरी है
इस जहाँ मे जीने के लिए

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