बहुत दूर तक का सफ़र तय कर लिया है तुमने,
वक़्त हो तो कभी ठहर जाना
अर्श में बिखरे पड़े बादलों के भीतर
लेकिन ये मत कहना के
अब यहाँ अंधेरे से परे कुछ बाकी नहीं रहा|
मैं कहानी के उस हिस्से में
अभी भी हूँ
जहां खाली पन्नों पे गर्द टहलती रहती है
तुम्हारे एक नूर का इंतज़ार करते हुए|
क्यूंकि असल में कुछ ख़त्म नहीं होता,
कोई एक उस खालीपन का बोझ
ढो रहा होता है|
और यदि अंत ही सबकुछ है;
तो तुम हर रात अपने ही बदलते वजूद को
समेट लेना,
वहाँ तुम्हें खाली बादल,
कुछ बिखरे पन्ने,
और कहानी की पहली गर्द;
ख़ुद ही पड़े मिलेंगे|
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