वो खिलौने नहीं शायद बचपन बेचता होगा,
वो झुग्गियो मे महलों के ख्वाब देखता होगा,
कोसता होगा वो खुदा को अपनी बदकिस्मती पर,
लेकीन फ़िर भी वो माँ के आँचल मे जन्नत देखता होगा।
वो कुड़े मे किसी अमीर के फेके जूते देखता होगा,
तब अपने नंगे पैरों को देखकर,वो जूते चुम्ता होगा,
नाचते-गाते दिखाता होगा माँ बाप को वो जूते
वो उन फटे पुराने जूतों मे खुद को खुशनसीब देखता होगा।
वो स्कूल जाते बच्चो के पीठ पर जब बैग देखता होगा,
तब वो अपने कंधे पर जिम्मेदारियों का बोझ देखता होगा,
कभी -कभी अकेले मे रोता होगा जब वो खुद पर,
तब वो ज़रूर खुदा से रहम की उम्मीद देखता होगा।
वो शहर मे जब बड़े-बड़े होटल देखता होगा,
तब वो अपनी गरीबी को कलंक देखता होगा ,
देखता होगा लाख रूपये का खाना खाने वालो की बेबसी,
तब अपनी माँ की सूखी रोटी में करोड़ों का प्यार देखता होगा,
वो खिलौने नहीं शायद बचपन बेचता होगा।।
वो झुग्गियो में महलों के ख्वाब देखता होगा।।
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