लो आज मैं भी हुई दुष्कर्म का शिकार,
निहत्थी थी मैं, उधर भारी थें वार,
आज मुझे भी लूट गया कोई,
आबरू मेरी छीन कर मुझे तोड़ गया कोई।
खुद को बचाया बार हज़ार,
पर, अकेली थी मैं, वो राक्षस थें चार,
आज फिर हुई देश की एक और बेटी बर्बाद,
पूरी हो गई उन हैवानों की चाल।
गिरी खुद की ही निगाहों में आज,
निर्दोष थी मैं, फिर क्यों ये अत्याचार,
आज तबाह हुई एक और शान घर की,
तड़प रहीं हूं मैं, उधर हंस रहें अधर्मी।
आयना देखने पर, हुई और भी शर्मसार,
काट रही मुझे हरपल, इस ज़माने की तलवार,
हैवानों की भूख का, मैं भी हुई शिकार,
बद से भी बद्तर हुआ मेरा खिलवाड़।
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