QUOTES ON #SLAMPOETRY

#slampoetry quotes

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20 JUN 2019 AT 22:40

एक पतंग है मेरी
रंग बिरंगी, चटकीली सी
कई संक्रांति से उसे मैंने निकाली नहीं
कहीं कट ना जाए,
कोई ले ना जाए
क्या पता
कोई इतने प्यार से
उसे सज़ा के रख ना पाए
पहले खूब उड़ती थी वो
डाल डाल पर मिलती थी वो
पर,
एक बार फस गई थी वो
बारिश, तूफान में थम गई थी वो
बहुत ध्यान से रखा मैंने उसे फिर
कागज़, गम से चिपकाया मैंने उसे फिर।
अब,
अलमारी में पड़ी अधमरी सी हो गई है
सोचती हूं फिर उड़ने दूँ उसे
जाने दूँ कहीं फिर उसे
पर डर जाती हूं कि कहीं
कोई उसे काट कर
अकेला ना छोड़ दे,

एक पतंग है मेरी
रंग बिरंगी, चटकीली सी,
एक ऐसा ही दिल है मेरा,
मोहब्बत से भरा, अकेला सा!

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14 JUL 2018 AT 16:33


29 DEC 2017 AT 16:47

चाय खत्म हो चुकी थी,
लेकिन कप में,
अभी भी कुछ बची थी...

ठंडी थी,
अलसाई थी,
लेकिन कप को मैं थामे हुए था...!

मेरे छुअन ने और पहले के,
गर्म चाय की गर्माहट ने,
हम दोनों को थामे रखा था...!

हर कोई तुम जैसा नहीं होता...!

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25 MAY 2017 AT 23:23

Title : The so called rights and its so called followers

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20 AUG 2018 AT 2:44

My August

(Caption)

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18 NOV 2018 AT 17:51

A shattering star is a chaos of
someone's dying hope and
celebration of someone's filled wish
Simultaneously.

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16 JAN 2018 AT 20:38

चाँद कुरेद कर उसकी मिट्टी से एक मूरत गढ़ी है...
और दुआ से उसमें जान भी डाल सकता हूँ...
लेकिन फिर वो मेरा खुदा हो जाएगा...
इसलिए उसे दुबारा तोड़कर...
अपनी कब्र को ढक रहा हूँ...!

इंसान हूँ,
खुदगर्ज़ी कैसे छोड़ दूं?
और क्यों छोड़ दूं?
तुम खुदाई छोड़ सकती हो?

तुम अभी वक़्त से पहले बदल जाओगी...
इसलिए, तुम में जान नहीं डाली।
न मैं ख़ुदा बनूँगा...
न तुम्हे बनने दूंगा।

मैं चाँद पर दफ़न हो जाऊँगा, और तुम...
मुझे ढकने वाली, चाँद की गीली मिट्टी ही रहोगी।

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18 MAR 2018 AT 1:14


27 DEC 2017 AT 23:28

Medusa के दंश में सींचित,
तुम्हारे संबंध में भी त्रिकोण था...

जिसमे Perseus, मैं कभी हो नहीं सकता था..
और Athena, तुमने ही मुझे बनाया था।

मैं तो Poseidon होना चाहता था...
लेकिन, तुमने उसे नाजायज़ ही रखा।

अब तुम्हारे उसी दंश से मैं,
अपने हर नाजायज़ प्रेम को सींचता हूँ।

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16 SEP 2019 AT 20:12

Phoolon ko kitabo mein daba kar,
Log yaaden sanjote hain...
Bina is baat pr gaur kiye,
Ki wo kitaab usi phool ke liye...
Ek kabrgaah bani hai!
Wo phool sukhenge,
Wo fir murjhayenge,
Apni ranginiyat ko kitabo mein khokar,
Apni nami ko khokar,
Is bewkufana harkat mein zard hokar,
Ek zamaaane ke baad yaad aayenge!
Uss panne mein na phool ki khushbu hogi,
Na phool mein panne ki khushbu,
Kitaab ko kholte hi...
Ek saundhi si mahak uthegi,
Panne paltenge,
Aur un zard pade ehsaason ko,
Fir wahi kabr naseeb hogi...
Koi bataye insaano ko,
Ki Kitabo ke beech mein,
Phoolon ko rakhne se,
Sirf kabrgaah banti hai...!

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