मुझे क्या ख़बर , के किधर गया, मिरी आँख में , वो जो ख़्वाब था
उसी ख़्वाब-ए-मन , में छुपा हुआ , मिरी ज़िन्दगी , का ह़िसाब था
मिरी बेटी सुन , न मचल यहाँ , कभी देख आबले पाँव के
मिरी ज़िन्दगी , की कमाई थी , तिरे हुस्न पर , जो शबाब था
न बुलंदियों , पे ग़ुरूर कर , कोई वक़्त से , न उलझ सका
यहाँ खा गए हैं उसे भी गिध , वो जो पहले एक उ़क़ाब था
तिरे हेर-फेर को ज़िन्दगी , मैं समझ सका न क़ज़ा तलक
मिरे आंसुओं की थीं मय्यतें , तिरे वास्ते वो जो आब था
मिरी ह़सरतें , मिरी ख़्वाहिशें , सभी सिस्कियों, में बदल गईं
वो बुलंदियों से, ज़वाल तक, का सफ़र बहुत, ही अ़ज़ाब था
जो निज़ाम-ए-ज़ीस्त पढ़ा गया , वो सभी सबक़ थे बहुत अलग
मैं ''ह़यात'' ये , न समझ सका , वो नसीब था , के निसाब था
-