Saathi rey
ज़रा सी जैसी गुजर रही, बड़ी वेहसत सी लगती है
हर शाम की इस जिल्लत से बेहतर कोई तन्हाई देदे।
या फिर मेरे गुनाहों का खाता बही कर दे तू ,
लिख कर मेरे कर्म पन्नों पर, ऐसी कोई सफाई देदे।
हम ही है वो कैदी, शरम से चेहरा झुकाए जाने कब से,
गले लगा ले मेरे यार,या सजा देकर मुझको रिहाई देदे!
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