लिखने को तो बहुत कुछ है आज भी मेरे पास, ना जाने क्यूँ अपने होंठ सिल लिये हैं कलम करती ही नहीं आजकल बयाँ हाल-ऐ-दिल मेरा पत्थर से हो गए हैं जबसे उनसे मिल लिये हैं ।
कभी एहसास कहने हो,तो अल्फाज न तु चुन, तेरे इन बन्द होठो से उन्हें ज्जबात चुनने दे..। तमाशा मत बना तू बोल के,खुद का लिहाज कर, कि अब खामोश लफ्जों मे उन्हें हर बात सुनने दे..।।