QUOTES ON #SILENTALKS

#silentalks quotes

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8 SEP 2018 AT 21:50

इतने कर्ज़ों में दबे ख़्वाबों पे मुस्का पाना
कितना मुश्किल है इक मकाँ का घर हो पाना

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12 DEC 2018 AT 17:24

---: इम्कान :---

वो शायर तन्हा होते हैं
जो नज़्म अधूरी लिखते हैं
कुछ कच्चा रेशम छोड़ते हैं
किसी और सिरे में बुनने को
वो अक़्सर चुप ही रहते हैं
कोई नई कहानी सुनने को
वो कहते हैं ये मुमक़िन है
कहीं और ख़तम हो ये किस्सा
वो कहते हैं ये मुमकिन है
दे दें सबको सबका हिस्सा
वो एक मुकम्मल ख़ाम सा जो
सच से भी ज्यादा कमसिन है
वो नज़्म अधूरे वक़्फे सी
मुमकिन हो, ऐसा मुमकिन है

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6 DEC 2017 AT 14:11

---: दूसरा मौका :---

चलो करते हैं
फ़िर वही ग़लतियाँ
क्या पता
नतीजे कुछ और हों

चलो फ़िर
शुरू से शुरू करते हैं
क्या पता
हम कहीं और पहुँच कर ख़त्म हों

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16 JUN 2017 AT 9:28

-:- ख़ला -:-

यूँ एक टक ख़ाली दीवार ताकना
पूछने पर बिन पलक झपकाए
'कुछ नहीं' कह देना
इन बेसबब शिकवों से परे
मालूम तुमको भी है
कोरे काग़ज़ में वैसे भी
गुंजाइशें तमाम होती हैं

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5 APR 2018 AT 5:34

— ख़्वाबीद —


मैं तुम्हारा देर रात का वो ख़याल हूँ
जो तुम्हें रोज़ जगाता है
तुम चौंक कर उठते हो
और “शुक्र है, एक ख़्वाब ही था”
सोच कर फिर सो जाते हो
अब ये तो तुम ही जानो
कि मैं एक बुरा ख़्वाब हूँ
या कुछ खो जाने का डर

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2 AUG 2018 AT 13:56

दर्द बन बन के उड़ा करती है ये ख़ाक ए सहर
अभी इक ख़्वाब वो निकला नही है रातों से
कफ़स की देहरी पे आ के भी रुक जाते हो
तुम्हारा दिल नही भरा हमारी बातों से

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5 JUL 2018 AT 19:57

बीतते साल की छुट्टियों में फ़साना कोई नया लिखूंगा
कुछ अजनबी बच्चों के बीच किताबें और कलम रखूंगा
नई कहानियां उग रही है नन्ही शाखों में हर कहीं
हमें मौत में भी ज़िंदा रखे, कुछ ऐसे किरदार लिखूंगा

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26 MAY 2017 AT 22:01

जाते जाते जो तुम उंगलियों से
कुछ इशारे लिख गए थे मेरे दरवाज़े पर,
अब ये दरवाज़ा बंद होने में आवाज़ें करता है,
अक्सर खुला ही रहता है अब ये दरवाज़ा,

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22 NOV 2018 AT 15:27

सत्य! विशेषण नही, संज्ञा है
(रचना अनुशीर्षक में)

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14 AUG 2017 AT 20:22

जब जुगनूं अलख जगायेंगे
और ख़्वाब जवां हो जाएंगे
मैं नई सहर के सूरज सा
फिर तुझे जगाने आऊंगा

मग़रीब स्याह हो जाएगी
और स्याही कम पड़ जाएगी
शबनम के कतरे ले कर मैं
फिर तुझको लिखने आऊंगा

कितनी भी दूर चला आऊं
लौट आऊंगा एक सिसकी पर
तुम भूलो या न भूलो, मैं
फिर याद दिलाने आऊँगा

जो बात छुपाई थी अब तक
शब्दों में शायद कह न सकूं
तुम आंसू मेरे पढ़ लेना
इज़हार-ए-निदामत लाऊंगा

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