ग़ज़ल
दिले बीमार को चारागरी अच्छी नहीं लगती।
इसे तो कोई अच्छी बात भी अच्छी नहीं लगती।।
तेरे चेहरे पे तो नाराज़गी भी जँच रही हैं, जान।
वगरना हर किसी पर बेरुख़ी अच्छी नहीं लगती।।
तुम्हारे साथ इतना ख़ूबसूरत वक़्त गुज़रा है।
तुम्हारे बाद हाथों में घड़ी अच्छी नहीं लगती।।
बताओ क्या परेशानी है? मुझ से झूठ मत बोलो।
किसी को बेसबब तो शायरी अच्छी नहीं लगती।।
तुझे ही देखते रहना मेरी आँखों का मक़सद है।
मगर टूटे दियों को रौशनी अच्छी नहीं लगती।।
के जब तक शायरी के ज़ाविये में तू नहीं आता।
हमें तब तक हमारी शायरी अच्छी नहीं लगती।।
Poet
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