आजकल उनसे बातें तो होने लगी है
पर अब वो अल्फ़ाज़ों को सजाते नहीं है
दूरियों में सुकून ढूंढने लगें है वो ,
नाराजगी अब हमसे जताते नही है
शब्दो को खामोशियों में परोसने लगे है
अब नादानियों से अपनी सताते नहीं हैं
सपनों को तोड़ने लगे हैं आराम से वो
वादों को भी अब निभाते नहीं है
मेरी पसंद भी भूलने लगे हैं जरा
क़िस्से वो रोज के अब बताते नहीं है
पूछते रह जाते है वो मेरे अनकहे अल्फाज
शायद आँखे मेरी अब पढ़ पाते नहीं हैं
यू बेवजह रुके है जाने क्यू
बिन बुलाए जब ख़्वाओ में आते नही हैं
बंधे है फिर क्यू वो इस रिश्ते में
क्यू जान-ए-वफ़ा से दूर जाते नही हैं
-lazy koala
-