कुछ रातें उदास बीतती है, जब चाँदनी थोड़ी सहमी और चाँद गुरूर से संपूर्ण लेकिन चांदनी से ज़रा रूसा सा होता है। शांत सी रात है आज, काली घनेरी, बेचैन सी कर रही है हवाए। चाँद की आग़ोश में आना तो चाहती है चांदनी, बाहें फैलाए इंतेज़ार में, पर उसका चाँद ज़रा खफ़ा खफ़ा सा है। गुरूर तो होना ही है चाँद को खुदपर। आखिर वो लाखो तारो के बीच एकलौता चाँद जो है और फिर चाहे कितना भी खफ़ा हो, चांदनी आखिर उसकी ही तो है।
-