" अक्सर "
अक्सर लूट जाता हूँ ,अपने से बडों को समझाने में ...
युं कहने को ,अच्छी सोच के खजाने अपने भी बड़े हैं !!
वोह नासमझी में और अमीर हो जाते हैं ...
मैँ कुछ अच्छा बदलने में ही गरीब हो जाता हुँ !!
अक्सर लूट जाता हूँ ,अपने से बडों को समझाने में ...
युं कहने को ,अच्छी सोच के खजाने अपने भी बड़े हैं !!
वोह दिन पर दिन , नासमझी की चट्टांन हो गए ...
मैँ उन पर अच्छाई तराषता हुआ, जुं बेबस कलाकार हो गया !!
अक्सर लूट जाता हूँ , अपने से बडों को समझाने में ...
युं कहने को ,अच्छी सोच के खजाने अपने भी बड़े हैं !!
वोह बेखबर ना जाने ,के कब उनकी नासमझी की दुकान हो गयी ...
बैठे बिठाये , जाने कब उनकी नासमझी के खरीदार हो गए !!
हम अच्छाई की दुकान खोलते रह गए ...
जाने कब उनकी , नासमझी के व्यापार हो गए !!
अक्सर लूट जाता हूँ , अपने से बडों को समझाने में ...
युं कहने को ,अच्छी सोच के खजाने अपने भी बड़े हैं !!
सुखविंदर ✍️🌄✍️
-