इस दिल में एक बोझ सा है,
सताया है मैंने एक शख़्स को,
जो सदियों से बड़ा ख़ामोश सा है!
कभी धिक्कारा, कभी दुत्कारा,
रात-रात उसे ज़ार-ज़ार रुलाया,
था वो पहले से ही काफी परेशां सा,
करके नज़रअंदाज मैंने उसे काफी तड़पाया!
उसकी मासूमियत पर मैंने प्रहार किया,
एक नहीं कई-कई बार किया!
खुशियों को उसके करीब आने ना दिया,
ग़म की दीवारों के बीच मैंने उसे छुपाया!
वो तड़पता रहा गिड़गिड़ाता रहा,
अंदर ही अंदर पल-पल घुटता रहा,
मैंने उसका सब छीन लिया,
जीते जी उसे मार गिराया!
-