ए काश के मैं गुलाब , गुलाब न होता ..
किसी की ख्वाइश , किसी का जवाब न होता ..
किसी शाबाब का मैं , कभी खिताब नही होता ..
ए काश के मैं गुलाब , कभी गुलाब न होता ..
आफताब था जो मैं कभी , आज सर सराब हूं मैं ..
कभी था आदाब दिलों के , आज दिलों के अज़ाब हूं मैं ..
कभी सदी का नायव मैं , आज भीतर सुना पड़ा मेहराब हूं मैं ..
कभी अमिताभ सा तेज़ था , आज बुझ रहा चिराग हूं मैं ..
हां वही प्रेम का प्रतीक .. हां वही गुलाब हूं मैं ..
काटें ओढ़कर कितने दिलों को मिलाया मैने ..
ए काश के मैं , मोहब्बत की किताब का कभी रेशमान ना होता ..
मैं था प्रेमाजिताभ , मेरा कभी ये हाल न होता ..
ए काश के मैं गुलाब .. कभी गुलाब ना होता ..
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