मैं बागी रहूंगा उन महफिलों का,
जहां शोहरतें तलवे चाटने से मिलती हों,
मेरा पुरखा चाणक्य था,
की हमारे गोद में खिलता निर्माण और ध्वंस दिनों ही,
हमसे न हो सकेगा दरबार में किसी की चाकरी,
गर कुबत है मेरे सामर्थ में , पुरषार्थ में, लेखनी में,
तो पोषक "चंद्रगुप्तों" की कमी नहीं।
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