मैं हाथ मे लिए रिमोट , बस टीवी के चैनल बदल रहा था ,
तू जानती है हर चैनल पे , एक तेरा ही चेरा चल रहा था |
शाम होते ही मैं फिर जा बैठा था अपनी खिडकी पर ,
तेरा दीदार होना था , सज सवर के चाँद निकल रहा था |
सब सोचते हैं , धुँआ धुँआ ये समां क्यों है ?
वो क्या जाने तेरी याद में , मेरा दिल जल रहा था |
होने को तो पूरी कायनात मेरे साथ थी लेकिन ,
अये सनम , बस एक तेरा न होना खल रहा था |
हाँ मुझमे जीने कि , अब भी उम्मीद थोड़ी बाकि है ,
हाँ इन नम आँखों में अब भी तेरा ही ख्वाब पल रहा |
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