जो उनकी नज़रों से आ रहा है, वो रग़बतों का पयाम क्या है,
मैं जान दे दूँगा एक पल में, बस उनसे पूछो, इनाम क्या है।
मैं उनके आग़ोश में पूरी शब था, निगाहें उनकी निगाह में थीं,
हुई सहर तो वो भूले सब कुछ, ये मुझसे पूछा, कि काम क्या है।
नज़र समंदर, ग़ुलाब लब और वो उनके रुख़सार मरमरीं हैं,
नशा है उन में ज़माने भर का, अब उनके आगे ये जाम क्या है।
जो उनके पहलू में हो के गुज़रा, तो जिस्म मेरा महक उठा था,
हाँ ग़ुलबदन की महक के आगे, ये इत्र-ओ-मुश्क-ओ-क़िमाम क्या है।
है उनका चेहरा छपा नज़र में, पर इससे ज़्यादा न कुछ ख़बर है,
मैं ढूँढूँ कैसे यहाँ पे उनको, कोई बताए तो नाम क्या है।
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