कुछ करने की राह में चलते जाते हैं,
कुछ पानें की राह में बढ़ते जाते हैं,
वक्त की रफ्तार से हैरान हैं चलनें वाले,
वक्त के चक्र में गिरफ्तार हैं बढ़नें वाले,
सामनें नजर आती जहाँ हैं सैकड़ो रंगीनियाँ,
बेड़ियाँ बन जाती वहीं हैं इनसे नज़दीकियाँ,
मंज़िल तक सिर्फ वही पहुँच पाते हैं,
बच कर जो इनसे निकल आते हैं,
दुष्वार बहुत है, निकलना इनसे संभलकर,
दुष्कर बहुत है चलना लेकिन ठहर-ठहर कर,
पाँव पड़ते है जहाँ आसरा होता नहीं,
अजनबी मिलते हैं सभी पासबाँ होता नहीं,
वक्त भी उसके साथ होता है,
मोल जिसे इसका पता होता है,
काँटें बिनकर राहों के, जीवन का तुम विस्तार करो,
कुछ अपना और कुछ दुनियाँ का भी तो उद्धार करो,
इतनें ऊँचे उठो के खुद मानवता तुम पर गर्व करे,
पीछे मुड़कर देखे तो खुद तू अपनें पर फक्र करे।
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