तू बारिश बन बरसजा मैं सदियों का प्यासा हूं
आज मैंने बाहें फैलाकर जो बारिश का इस्तकबाल किया
वो प्यार बनकर बरस पड़ी है मुझे पूरी तरह भीगा दिया
जरा सी धूल थी कुछ फूलमुरझा चुके थे मेरे आंगन के
चमका दिया चमन बहार की तरह मेरे आंगन को सावन की तरह खिला दिया
निश्चेत मन, गम्भीर ह्रदय को पूरी तरह जगा दिया
निशप्राण शरीर में जीवन संचार बनी है
चिरस्थाई अवसाद,अचेतन स्तंभों को उखाड़ दिया लगाता है
नई उमंग नई चेतना की अब तो परिवर्तनशाली बयार को उस इष ने चला दिया...
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