इस कठिन - कठोर की माया में ,
मेरा बहना हर क्षण तरल रहे !
कुछ लिखा करूँ - कुछ पढ़ लूँ मैं ,
बस जीवन इतना सरल रहे !
हर शून्य - अधिक ; हर भय - हर भ्रम को ,
बस मन से लिख दूँ - मन के श्रम को ...
इस मृदुला का कोलाहल थामे ,
मौन हृदय का अटल रहे !
कुछ लिखा करूँ - कुछ पढ़ लूँ मैं ,
बस जीवन इतना सरल रहे !
सत्य - असत्य के सहज शोध को ,
कुछ अजय लिखूँ हर ज्वलित क्रोध को ...
हर भाव - भँवर के दलदल में ,
शोभित यौवन का कमल रहे !
कुछ लिखा करूँ - कुछ पढ़ लूँ मैं ,
बस जीवन इतना सरल रहे !
- कोमल ' विनोद '
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