**पता नही क्यूँ**
हम जिसे अपना खास बनाते हैं ,
पता नहीं क्यूँ हम उसे ही रास नहीं आते हैं ,
हम जिसे अपने दिल में बसाते हैं ,
पता नहीं क्यूँ हम उसी के दिल में बस नहीं पाते हैं,
हम जिसे अपनी सर--आंखों पर बिठाते हैं ,
पता नहीं क्यूँ हम उनकी नजर में टिक नहीं पाते हैं,
हम जिसे खोना नहीं चाहते हैं,
पता नहीं क्यूँ वही हमें पाना नहीं चाहते हैं,
हम जिसे पूरा हक जताने का अधिकार देते हैं,
पता नहीं क्यूँ उनपर हमारा हक जताना उनके मूड को खराब बना देते हैं,
हमारी नादानी भी उन्हें समझ नहीं आती है ,
पता नहीं क्यूँ हमारा उनको डराना भी उन्हें धमकी नजर आती हैं,
हम कल भी अनजान थे उनके लिए और आज भी अनजान हैं,
खुश रहे उसी में जिसमें बचा रहता उनका स्वाभिमान हैं,
मगर यह याद रखना कि भगवान सबको एक जैसा ही बनाते हैं ,
बस किसी को अच्छाइयों से भरा तो किसी को खामियों से भरा बनाते हैं ।
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