QUOTES ON #POETICJUSTICE

#poeticjustice quotes

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14 JAN 2022 AT 20:15

बेरहम जिंदगी और उसकी बेतुकी सी ख़ाहिश।

ख़ाहिश यही की बस्स जिंदगी गुलजार हो।
हर दीन हँसी का हो।
और गम का नामोनिशान न हो।
चाहे कठिनाईयोकी बारिश हो।
बस्स चहेरे पे छोटीसी मुस्कान हो।

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10 JAN 2017 AT 9:01

मुझको ज्यादा नहीं तू सता पायेगा,
मुझसे यूँ दूर तू कब तलक जायेगा,
चाहे ठुकराए पर मुझको है अब यकीं
मेरा है, मुझ तलक लौटकर आयेगा।
#AkshayAmritPoetry

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28 FEB 2020 AT 12:09

अब रोज़ाना पहनेंगी हमदोनों की आँखें
वो जो दो जोड़ी कपड़े आंसूं के हिस्से है।

यानी,ग़र रोटी का किस्सा रहने दें तो भी
मज़हब के सारे झगड़े आँसूं के हिस्से है।

औ खूनी मंसूबे दिल्ली के समझो लोगों
यों आने वाली नस्लें आँसूं के हिस्से है।

यूं फूटकर रोना तय है लौंडों का धोके पर,
तौबा ये पत्थर लड़के,आँसूं के हिस्से है।

वैसे तो मरना भूखों का जायज़ नइ लेकिन
लानत है , ज़िंदा बच्चे आँसूं के हिस्से है।

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20 MAR 2020 AT 9:47

अस्त में था उदय में नही था
प्रेम के मैं विषय में नही था

...जंग में हारना तय रहा है
जान मैं मात शय में नही था

और कितना ये फिल्मी है सोचो
शेर अच्छा प' लय में नही था

ज़िन्दगी नज़्म है ग़र पढ़े,पर
रंग अपना विलय में नही था

हिज़्र आया चलन में तुम्ही से
...हिज़्र मेरे समय में नही था

मौत,तारीख़,इंसाफ,अदालत
आज भी जुर्म भय में नही था

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11 JAN 2019 AT 19:41

Behind every white background there is silence, peace and a story of war that symbolizes the better version of you.

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1 DEC 2019 AT 7:26

आगे की कहानी में ऐसा भी मंज़र आएगा।
कि जमीन पर रेंगती तितलियाँ देखी जाएंगी।

यानी फिर वही नाटक चलेगा रेप और मीडिया,
यानी फिर हाथों में मोमबत्तियाँ देखी जाएंगी.!

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5 JAN 2018 AT 12:54

Someone once asked me :

"You are a Martial Artist and a Boxer on one hand and a writer on the other. How do you reconcile between these 2 contradictory professions ?"

I replied, "I'm a Martial Artist and a Boxer by Passion and a writer by Heart. The same hand which can write a beautiful poem can knock you out in a single punch. And that is what I call as 'Poetic Justice'."

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26 NOV 2019 AT 12:19

ज़िंदगी की मजार पर बिकता लहू है
हमसे पुछो कि कैसा दिखता लहू है।

हर कदम पे सासों के लोथड़े मिले है
कर के सीना छल्ली चीखता लहू है।

लहू वो जो बगावत की आग में जले,
बाद मोर्चे की शक्ल में ढलता लहू है।

लहू कुछ नही बस सियासती खेल है,
ये खेल जहाँ मिट्टी से मिलता लहू है।

मैं हिन्दू यूं मुसलमान हो जाता हूँ
मज़हबी रंग में जब रंगता लहू है।

है डर बस इंसानियत से ज़माने में,
हर बात पर यहाँ बस बहता लहू है।

क्यों न हो मैं कुरान पढूँ और गीता भी,
क्यों?,नफरत की भेंट चढ़ता लहू है.!

मैं राम,मैं अल्लाह,मैं यीशु,मैं नानक.
फिर मैं कौन?,लाश से कहता लहू है।

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6 FEB AT 13:59

Poetry should inspire your soul
But if you ignore its gentle voice
What's the use of poetry
When it can't make you rejoice?

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15 FEB 2017 AT 9:26

Whose folly is it,
that we are called upon to suffer
the sins of the dead they committed here?

Or, have they been served with justice in their suffering and death before the temporal courts too tardily pronounced them guilty?

Believe in Justice, temporal or poetic.

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