रहती थी थोडी मुस्कुराहट वो कहा चली गई,
क्यूँ है दर्द भरे से ये पल क्यूँ रो दिये हम,
वो चुप क्यूँ है बात क्यूँ नही करते,
ये किस गलती के कसूरवार हो गये हम,
इंतजार और इंतजार ही है क्या नसीब में हमारे,
कब से राह देखते हुए एक कोने में है बैठै हुए हम,
अब कर रही है आंखे दर्द, बेजान से होते जा रहे हैं,
थक तो चुके हैं लेकिन हौसला मजबूत बनाये हुए हम,
इतना सताया है जी भर के रूलाया है ऐ-जिन्दगी,
अब तो तेरे ही हो रहे हैं मोहताज हम,
यकीन फिर आयेंगे वो हंसी बनकर हमारी
उनके लिये बैठे हैं हथेली पर लिये अपनी जान हम
-