बहूत ही दर्द होता है वो पाँच दिन,
तन-मन बहुत रोता है वो पाँच दिन,
लाल सी हो जाती है जैसे पूरी ज़िन्दगी,
दिल क्यों ऊब सा जाता है वो पाँच दिन,
नज़रे सबकी बदल जाती है मेरे लिए,
अछूत महसूस कराता है वो पाँच दिन,
घर के एक कोने में पड़ी रहती हूँ बेजान,
खाना पीना है मिलता वहीं वो पाँच दिन,
'ईश'ने दी है मुझे सृष्टि सर्जन की शक्ति,
फिर क्यों सबको मलाल है वो पाँच दिन,
मुझे परवाह अब नहीं क्या सोचते हो तुम,
नारीत्व धरणका अभिमान है वो पाँच दिन।
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