उदास रात.. कितना धीरे बीती
लगभग रेंगती हुई, मानों पैरों में किसी ने भारी-भरकम पत्थर बाँध दिये हों
पीछे धूल में सनी रक्त की एक महीन रेखा घिसट रही
सबकुछ चुप है, कोई आवाज नहीं
एक मुर्दा शांति
अपनी ही साँसों का शोर बर्दाश्त नहीं हो रहा
मन पत्थर हो गया
रात मेरे शब्द मर गए
आँखों में आँसू भी सूख गए
दिल में दर्द का एक अंतहीन सागर
कौन था वो, जिसने मुझे इस हाल में छोड़ दिया
कौन था वो, जिसके लिए मैंने सब कुछ लुटा दिया
कौन था वो, जिसके बिना मुझे जीना नहीं आता
कौन था वो, जिसका नाम लेने से मेरा गला सूख जाता
वो तो चला गया, मुझे अकेला छोड़कर
वो तो चला गया, मुझे तड़पाता छोड़कर
वो तो चला गया, मुझे बर्बाद करता छोड़कर
वो तो चला गया, मुझे मरता छोड़कर
अब क्या करूं, कहाँ जाऊं, किससे कहूं
मेरा जीवन एक अधूरा ख्वाब है
मेरा जीवन एक बेमानी सफ़र है
मेरा जीवन एक उदास रात है
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