चुप हैं वो कोई गौर करो,
अकेलेपन का शोर सुनो.
कुछ अपनी कहो,
थोड़ी उनकी सुनो.
एक ही वजूद का हिस्सा हैं हम,
जीती जागती इंसानियत का किस्सा हैं हम.
खो गयी हैं मासूमियत कही,
छुप गयी हैं खुशिया वही.
सेहमी सेहमी सी चीख उनकी,
दबी हुई हैं वीरानों में.
अंधेरो में उजाला कोई,
अंजानो में हो अपना कोई.
ढूंढे वो हर मोड़ पर,
कोई तो समझे जी तोड़ कर,
सच को जिता पाये जो,
झूठ को मिटा पाये वो.
बचाकर ले जाए जो,
फुसलाकर समझाये वो.
पहचाने दिल की गेहराईयों को,
जाने रूठी हुई तनहाईयों को.
चलो थामे हाथ उन झुके हुऐ हौसलों का,
देर ना हो जाऐ जरा सम्भालने की कोशिश तो करे.
क्योंकि,
ज़िन्दगी की अदालत में आज हारे हैं वो,
मौत के सफर की शुरुआत के खामोश इशारे हैं वो..!!
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