मैं किसी से भागती नही बस,
डर लगता है किसी से जुड़ जाने में,
दर्द बहुत है औऱ भी जिंदगी में,
डर लगता है अब और दर्द बनाने में,
मुझे पता है बेरुखी का दाग लगा है,
पर दिलचस्पी सी नही होती ,
साहब अब इन्हें मिटाने में,
डर लगता है अब और दर्द बनाने में,
दोस्ती की है निभाउंगी भी,
जो रूठा है मनाऊँगी भी,
पर दोस्त क्या रूठता मनाने में,
डर लगता है अब और दर्द बनाने में,
हम्म मुझे वक्त नही है,
पर मेरी दोस्ती बेवक्त नही है,
न समझे तो बेहतर है तेरे जाने में
डर लगता है अब और दर्द बनाने में,
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